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बाढ़ से दुर्दशा आखिर जिम्मेदार कौन

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पिछले कुछ दिनों से देश के लगभग सभी भागों में बाढ़ का कहर जारी है । उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा आदि सब जगह बाढ़ की चपेट में आए हुए हैं । दरअसल नजर मारे तो ऐसा भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी हो रहा है । अमेरिका, चाइना जैसे उन्नत देशों के कुछ हिस्सों में बाढ़ का कहर आया हुआ है । फर्क सिर्फ इतना है कि वहाँ के लोग इस तरह की त्रासदी के बाद आगे से उससे बचाव का पुख्ता प्रबंध करते हैं । जबकि हमारे देश में जुलाई और अगस्त में इस तरह की त्रासदी का होना हर साल की बात है । दस दिन बाद मौसम बदल जाएगा । पहाड़ों पर पानी बरसना कम हो जाएगा, नदियों का जलस्तर घटने लगेगा और मीडिया किसी और काम में लग जाएगा और हम सब इसको भुला देंगे । अगले वर्ष फिर बारिश के समय में बारिश का पानी कहर ना बरपाए, इसकी कोई चिंता नहीं की जाएगी । डिसास्टर मैनेजमेंट के नाम हजारों करोड़ों रुपया साल का बर्बाद कर दिया जाता है । किंतु नतीजा ज्यों का त्यों ही रहता है । हम बचपन से सुनते आए हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के कारण होगा क्योंकि पानी की किल्लत इतनी हो जाएगी कि लोग आपस में लड़ेंगे । इसके लक्षण दिखते भी हैं दिल्ली, जहां का जलस्तर आज से 25-30 साल पहले 60-70 फुट पर होता था । वो आज घटकर 200-300 फुट पर चला गया है । भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार ने एक ही प्रयास किया कि ग्राउंड वॉटर को सीधा ट्यूबवेल से निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया । हमारे देश में किसी भी परेशानी को हल करने का एक ही तरीका है कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए । फिर उस पर प्रतिबंध लगते ही सरकारी तंत्र की मौज हो जाती है । उस कार्य को करने का व्यापार चल उठता है । पिछले 20 साल से दिल्ली में बोरिंग के माध्यम से जमीन में से पानी निकालना प्रतिबंधित है और इस 20 साल में हजारों की तादाद में दिल्ली में हजारों की संख्या में बोरवैल लग गए । आखिर आवश्यकता क्या है बोरवैल पर प्रतिबंध लगाने की । यदि दिल्ली में हर वर्ष सामान्य से अधिक बारिश हो रही है तो । बारिश के पानी को यदि उचित प्रकार से संभाला जाए और वॉटर मैनेजमेंट पर गंभीरता से कार्य किया जाए तो मैं दावे से कहता हूं कि मात्र 2 वर्ष में दिल्ली के जल का स्तर बढ़ जाएगा और दिल्ली में पीने के पानी का संकट खत्म हो जाएगा । मैं बाढ़ के संकट की समस्या ज्यादा करना उचित नहीं समझता क्योंकि बाढ़ की समस्या मात्र 15 दिन की है और दिल्ली में जल के आभाव का जल संकट साल में 350 दिन का है । आज भी देश की राजधानी दिल्ली जो इस समय बाढ़ में डूबी हुई है उसके सैकड़ों गांवों में पुलिस की पहरेदारी में पीने के पानी का वितरण किया जाता है । दिल्ली-एनसीआर के 80% से ज्यादा जोहड़ों पर भू-माफियों ने कब्जा कर लिया, जिन जोहड़ों में न केवल बारिश का पानी समाता था । अपितु उससे भू-जल का स्तर हर वर्ष बढ़कर सामान्य हो जाता था । पिछले कुछ वर्षों में भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए एक नई टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया जिसका नाम है वॉटर हार्वेस्टिंग । इसमें हजारों करोड़ रुपए निजी और सरकारी तौर पर खर्च किया गया । लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला ।

दिल्ली की सीमा से निकलने वाली यमुना जी की कुल लंबाई लगभग 22 किलोमीटर है और यदि पिछले 30 सालों में इस 22 किलोमीटर की यमुना नदी को साफ करने व रख-रखाव में सरकारों का कुल खर्चा देखा जाए तो प्रत्यक्ष व प्रोक्ष रूप से आकुष्ट आंकड़ों की माने तो लगभग 20000 करोड़ रुपए है यानी 1 किलोमीटर यमुना नदी के रख-रखाव में 1000 करोड़ रुपया खर्च हुआ है। अब इसको आप क्या कहेंगे? यमुना नदी की सफाई व देख-रेख दिल्ली की सरकारों का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। जिसकी कोई जवाबदेही नहीं है और यह एक ऐसा खर्चा है जिसका ऑडिट भी कर पाना मुश्किल है। जिस देश में सीवर लाइन की सफाई का ठेका जुलाई में दिया जाता है। उस देश के अधिकारियों के काम करने के तरीके पर आप हँस ही सकते हैं। बड़ा सवाल ये है कि देश की राजधानी में इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है और आगामी वर्षों में इस प्रकार से यदि बारिश आती है। तो उसको पुख्ता प्रबंध क्या है? आप देश की आर्थिक स्थिति आजादी के बाद सबसे ज्यादा मजबूती पर है। टैक्स कलेक्शन अब तक की ऊचाईयों पर है तो सरकारें पैसा न होने का कोई बहाना नहीं लगा सकती। तो ये बात तो तय है कि कमी पैसे की नहीं, कमी सरकारी तंत्र की सोच और नियत की है। देश में इतनी बर्बादी के बाद बहुत दुख हुआ। यह जानकर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की तरफ से एक भी बयान और प्रयास नहीं हुआ। तो क्या महानगरों का बाढ़ से डूब जाना शहरी विकास मंत्रालयों के कार्यक्षेत्र से बाहर है? हालांकि मंत्रालय की कमी नहीं। डिसास्टर मैनेजमेंट को देखने के लिए एक मंत्रालय है और उसके उच्च अधिकारी हैं और वॉटर रिसोर्स का एक अलग से एक कैबिनेट मंत्रालय है यानी की तीन केंद्रीय मंत्रालय प्रत्यक्ष रूप प्रत्यक्ष रूप से इस पर कार्य करने के लिए है। किंतु पूरे देश की तो बात दूर रही मुंबई जैसे महानगरों और देश का सरताज कहलाने वाली राजधानी की दुर्दशा भी राजनीति का शिकार होकर रह गई। केंद्र के जो सत्तारूढ़ दल है। दिल्ली में किसी और पार्टी की सरकार है और दिल्ली नगर निगम में पहले तो अलग पार्टी का कब्जा था। अब उसी दल का कब्जा है। राजनीतिक दल हर आपदा का राजनीतिक फायदा उठाने के प्रयास में लगे रहते हैं। आम आदमी ऐसे ही पिसता रहता है। अधिकारी भ्रष्टाचार करने की फिराक में लगे रहते हैं। “तो आखिर जिम्मेदार कौन”?

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