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ब्राहमक विज्ञापन पर पतंजलि को सुप्रीम फटकार अन्य पर भी हो सख्त कार्यवाही : शरद गोयल

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बादशाहपुर, 4 अप्रैल (अजय) : उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्पादों को ब्राहमक मानकर पतंजलि के संस्थापक स्वामी रामदेव व बालकिशन को कड़ी फटकार ही नहीं लगाई अपितु उनके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए अगली तारीख सुनिश्चित कर दी। उक्त विषय में बोलते हुए आज नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने कहा कि दरअसल सुप्रीम कोर्ट के माननीय उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को यदि व्यापक रूप में देखा जाए तो वह बहुत उचित फैसला है। लेकिन विज्ञापन जगत में जितने ब्राहमक विज्ञापन आते हैं उन सभी पर स्वयं ऑटो संज्ञान लेकर सभी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अधीन कार्यवाही करनी चाहिए। कमोपेश भारतीय दूरदर्शन पर दिखने वाले सभी विज्ञापन ब्राहमक हैं और उत्पाद की गुणवत्ता को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, जोकि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए दिशा निर्देशों के खिलाफ है। यदि मैं उदाहरण देने लग जाऊं तो बहुत लम्बी लिस्ट इन विज्ञापनों की है। उदाहरण के तौर पर सर्दियों के दिनों में एक थरमल वियर का विज्ञापन आता है। जिसको पहनकर विज्ञापनदाता बर्फ से ढकी हुई किसी वस्तु को छुता है और वह बर्फ पिघल जाती है।

बीमा कंपनियों के विज्ञापन तो मानवता की भी सीमा तोड़ते हैं। एक विज्ञापन में एक महिला एक मृत्त पति की फोटो को गुस्से में देखकर बोल रही है कि आप तो बिना बीमा लिए चले गए अब इन बच्चों की पढ़ाई और घर की ईएमआई कौन भरेगा। लगता है विज्ञापन बनाने वालों ने संवेदनशीलता की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। गर्मियों के दिनों में शीतल पेय के ऐसे-ऐसे उदाहरण आते हैं जिसको पीकर पीने वाला ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों से छलांग मारने लग जाता है इन सब विज्ञापनों से खतरनाक वर्तमान में भारत सरकार ने गेमिंग एप्स को भारत में चलाने के लिए अनुमति दे दी है और उनका विज्ञापन सबसे ज्यादा खतरनाक है हालांकि उस विज्ञापन के अंत में विज्ञापनकर्ता जल्दी-जल्दी यह बोलता है कि इस गेम से वित्तीय नुकसान भी हो सकता है और इसकी आदत भी पड़ सकती है समझ नहीं आता कि इतनी खतरनाक चेतावनी वाले विज्ञापन को दूरदर्शन पर दिखाने की क्या मजबूरी है आज विज्ञापन का माफिया देश में इतना बड़ा हो गया है कि बड़े उत्पादों की बात तो अलग है। पापड़ और अगरबत्ती जैसे उत्पाद भी आज बिना टीवी पर विज्ञापन के बेचना असंभव सा हो गया है। इसलिए मेरा मानना है कि विज्ञापन जगत के ऊपर निगरानी के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय को एक मॉनिटरिंग कमेटी बनानी चाहिए जिस प्रकार की कार्यवाही पतंजलि पर की गयी  उसी प्रकार की कार्यवाही अन्य ऐसे विज्ञापनदाताओं जो अपने उत्पाद की गुणवत्ता को कई गुना बढ़ा चढ़ाकर और ब्राहमक तरीके से प्रस्तुत करते हैं। इसके लिए उच्चतम न्यायालय को किसी याचिका का इंतजार नहीं करना चाहिए क्योंकि विज्ञापन जगत बच्चों से लेकर बूढ़ों तक जुड़ा हुआ है।

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