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गरीबी को कानूनी सहायता का अधिकार : बबिता

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PBK News : अनुच्छेद 39 क – के अंतर्गत कहा गया है कि राज्य सरकार यह सुनिष्चित करे कि ऐसी न्याय प्रणाली का कार्यान्वयन हो सके , जिससे सबको समान रुप से न्याय मिल सके तथा उचित कानून व योजनाओं द्वारा या अन्य किसी भी तरीके से नि:शुल्क कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराने का विशेष प्रयोजन करे , जिससे सभी नागरिकों को न्याय प्राप्त कराने का अवसर मिल सके।

उन्नति चेरिटी की संचालिक बबिता यादव कहती है कि अनुच्छेद 21– किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण तथा दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित ना रखा जाए,सिवाए उस हालत के जो कानून में बनी प्रक्रियाओं द्वारा स्थापित किए गये हों।

बबिता यादव ने उच्चतम न्यायालय का आदेश बताते हुए कहा कि 

1-राज्य ऐसे अभियोगी को जो गरीबी के कारण कानूनी सेवाएं प्राप्त नहीं कर सकता है । उसे नि:शुल्क वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराए।

2-अगर मामले की स्थिति व न्याय की मांग है तो अभियुक्त के लिए वकील नियुक्त करे, पर यह तभी हो सकता है जब अभियुक्त को वकील की नियुक्ति पर आपत्ति ना हो।

3-मुकदमे की कार्यवाही के दौरान वैधिक सेवाएं न प्रदान कराना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है ।

4-वकील की नियुक्ति के लिए अभियुक्त को आवेदन देने की आवश्यकता नहीं है ।

5-मजिस्ट्रेट अभियुक्त को उसके अधिकार से अवगत कराएगा औऱ वकील की नियुक्ति के लिए पूछेगा

6-सरकार का ये कर्तव्य है कि वह कैदियों को निर्णय की कॉपी उपलब्ध कराए।

7-गिरफ्तार व्यक्ति अपनी पसंद के वकील से परामर्श कर सकता है ।

8-वकील से परामर्श करने का अधिकार हर व्यक्ति को प्राप्त है ।

राष्ट्रीय वैधिक सेवा अधिनियम 1987

बबिता ने बताया कि यह कानून केवल गरीब लोगों को वैधिक सहायता ही उपलब्ध नहीं कराता , बल्कि विभिन्न निकायों के गठन का प्रावधान भी बनाता है , जिससे लोगों को उनके अधिकारों के विषय में अवगत कराया जा सके  तथा वो अपने वैधिक उपचारों हेतु लोक-अदालतों में समझौते के लिए जा सकें ।

राष्ट्रीय वैधिक सेवा अधिनियम के उद्देश्य

वैधिक सेवा प्राधिकरणों का गठन,समाज के कमजोर वर्गों को नि:शुल्क तथा सक्षम वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराना,यह सुनिष्चित करना कि आर्थिक या अन्य असमर्थताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित ना किया जा सके,लोक-अदालतों को संगठित कर ऐसी वैधिक प्रणाली की व्यवस्था करना जिससे समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो सके।

लोक अदालत

लोक अदालतों के द्वारा लोगों के आपसी विवाद , जो न्यायालय के समक्ष अटके हों , उनका निपटारा मित्रतपूर्ण ढंग से स्वेच्छा से समाधान निकाला जाता है।

1-लोक अदालत वादी-प्रतिवादियों , कानून व्यवसाय के सदस्यों, सामाजिक कार्य में रत समूहों तथा न्यायिक अधिकारियों के मुकदमे के निष्पक्ष समझौते तक पहुंचने की प्रक्रिया में प्रबुद्ध भागीदारी का मौका देती है ।

2-लोक अदालत का निर्णय अधिनिर्णय है औऱ इसके द्वारा दिया गया फैसला अदालतों से मान्यता प्राप्त है ।

3-लोक अदालत द्वारा दिए गए निर्णय की अपील किसी दूसरी कोर्ट में की जा सकती है ।

लोक अदालत के निर्णय के अधिकार

1-गवाहों को उपस्थित होने के लिए बाध्य करना तथा उन्हें शपथ दिलाकर पूछताछ करना ।

2-किसी भी दस्तावेज को प्रस्तुत करना ।

3-शपथ पत्रों पर साक्ष्य स्वीकार करना ।

4-सरकारी दस्तावेज या उसकी कापी किसी अदालत या दफ्तर से मंगवाना।

लोक अदालत के लाभ

1-यह बिना विलंब व खर्च के सामाजिक व आर्थिक रुप से पिछड़े लोगों को न्याय दिला सकती है ।

2-यह मुकदमें के पक्षों के बीच एकता , मित्रता तथा शांति की भावना उत्पन्न कर सकती है ।

3-यह वादियों को अदालत के खर्चों , वकीलों की फीस औऱ लंबे चलने वाले मुकदमों की चिंताओं , कड़वाहट व खर्चों से बचाती है।

राष्ट्रीय विधिक सेवा अधिकरण

राष्ट्रीय विधिक सेवा अधिकरण के कार्य

1-अधिनियम के प्रावधानों के तहत वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए नीतियां व सिद्धांत बनाना।

2-वैधिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रभावपूर्ण व कम खर्च वली योजनाएं बनाना।

3-उपभोक्ता संरक्षण , वातावरण संरक्षण तथा अन्य कई मामले जो समाज के कमजोर वर्गों से संबंधित हों, उनके लिए सामाजिक न्याय से संबंधित मुकदमे चलाकर आवश्यक कदम उठाना तथा इस प्रयोजन से सामाजिक कार्यकर्ताओं को वैधिक क्षमता में प्रशिक्षण देना ।

4-ग्रामीण क्षेत्र , बस्तियों , मजदूर बस्तियों में वैधिक सहायता शिविर का संगठन करना ।

5-विवादों का निपटारा बताचीत, मध्यस्थता व आपसी समझौते द्वारा करने के लिए प्रोत्साहित करना ।

6-वैधिक सेवा क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ाना विशेषतया गरीबों में ऐसी सेवाओं की आवश्यकता के संदर्भ में अनुसंधान करना।

7-वैधिक सेवा कार्यक्रमों के प्रवर्तन का मूल्यांकन व निरीक्षण तथा अधिनियम के अंतर्गत प्रदान की गयी राशि से चल रहे विभिन्न कार्यक्रम  तथा योजनाओं का स्वतंत्र मूल्यांकन का आयोजन करना।

8-स्वैच्छिक समाज सेवा में लगी संस्थाओं को तथा राज्य व जिला अधिकरणों को विशेष योजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना ।

9-बार काउंसिल आफ इंडिया के परामर्श से विधि शिक्षा कार्यक्रम बनाना तथा विश्वविद्यालयों , लॉ कालेजों तथा अन्य संस्थाओं में वैधिक सेवा निदान की स्थापना करना , निरीक्षण करना तथा उनका मार्ग दर्शन करना ।

10-समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को उनके वैधिक अधिकारों के विषय में जगाने के लिए उपयुक्त उपाय करना ।

11-स्वैच्छिक कल्याणकारी संस्थाएं जो आधिकारिक स्तर पर दलित, आदिवासी , महिलाओं औऱ ग्रामीण व शहरी श्रमिकों का काम कर रही हों , उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करना ।

12-राज्य अधिकरणों , जिला अधिकरणों , उच्चतम न्यायालय  वैधिक सेवा समिति, उच्च न्यायालय वैधिक सेवा समिति, स्वैच्छिक सामाजिक संस्थाएं तथा अन्य वैधिक सेवा संस्थाओं के कार्यों का समन्वय करना तथा उनके वैधिक सेवाओं के कार्यों का समन्वय करना तथा उनके वैधानिक सेवा कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए निर्देश देना ।

राज्य  विधिक सेवा अधिकरण

राज्य अधिकरण का कर्तव्य है कि वह केंद्रीय अधिकरण द्वारा तय की गयी नीतियों व निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करे ।

राज्य विधिक सेवा अधिकरण के कार्य

1-इस अधिनियम के अंतर्गत दी गयी शर्तें पूरी करने वाले व्यक्तियों को वैधिक सेवा प्रदान करना ।

2-लोक सेवा आदालतों संचालन करना , जिसमें उच्च न्यायालयों के समक्ष आने वाले मामलों के लिए भी लोक अदालतों का संचालन करना शामिल है.।

3-निवारक व सामयिक विविध सहायता कार्यक्रम चलाना।

4-अन्य कार्य जिनमें राज्य अधिकरण , केंद्र अधिकरण परामर्श करने के बाद नियमों के अनुसार तय करेंगे ।

जिला विधिक सेवा अधिकरण

जिला अधिकरण समय-समय पर राज्य अधिकरण द्वारा सौंपे गये कार्य को पूरा करता है ।

जिला विधिक सेवा अधिकरण के कार्य

1-जिले में तालुक विधि सेवा समिति तथा अन्य विधि सेवा के कार्य में सामंजस्य स्थापित करना

2-जिला में लोक आदालतों का गठन करना

3-अन्य कार्य जो राज्य अधिकारण द्वारा नियम बनाकर तय किए गये हों।

तालुक विधिक सेवा समिति

तालुक विधिक सेवा समिति के कार्य

1-तालुक स्तर पर वैधिक सेवाओं में तालमेल कराना।

2-तालुक स्तर पर लोक अदालतों का गठन।

3-अन्य कोई भी कार्य जो जिला अधिकरण द्वारा सौंपा गया हो ।

विधिक सेवा का अधिकार

नि:शुल्क विधिक सेवा प्राप्त करने के अधिकारी व्यक्ति

अनुच्छेद 23 के अंतर्गत मानव दुर्व्यापार तथा बलातश्रम से पीड़ित व्यक्तिमहिला, बच्चा , मानसिक या अन्य रुप से अपंग व्यक्तिसामूहिक दुर्घटना , जातीय हिंसा, जातीय अत्याचार, बाढ़, सूखा , भूकंप या औद्योगिक दुर्घटना से पीड़ित व्यक्तिऔद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत मजदूरसंरक्षण गृह, बालगृह , मानसिक अस्पतालों के रोगी, बालगृह तथा मानसिक रोगियों के चिकित्सालयों में रह रहे लोग9000  रुपए से कम की सालाना आमदनी या इससे अधिक राशि जो राज्य सरकार ने निर्धारित की हो,  यदि उसका मामला सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य किसी कचेहरी में होवह व्यक्ति जिसकी सालाना आय 12000 रुपए से कम हो , या इससे अधिक राशि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जा सकती है या उसका मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में हो ।

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