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नौ निहालों की आत्महत्या व्यवस्था के माथे पर कलंक : शरद गोयल

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बादशाहपुर, 12 अगस्त (अजय) : हाल ही में एक खबर आई कि देश में कम्पीटीशन एग्जाम की तैयारी करवाने वाला हब राजस्थान के कोटा शहर में सन 2023 में अब तक 20 बच्चों ने जोकि यूपीएससी, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने निराश होकर आत्महत्या कर ली। उक्त विषय में बोलते हुए नेचर इंटरनेशनल के अध्यक्ष शरद गोयल ने कहा कि दरअसल सुंदर भविष्य की कामना और महानगरों की चकाचौंग ना पाने की हताशा और अच्छी जीवन शैली व्यतीत करने का सामाजिक दबाव यह कुछ ऐसे कारण है जो इन होनहार बच्चों को अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए प्रेरित करता है। दरअसल भारत के बारे में यह एक सत्य है कि भारत एक दुनिया का ऐसा देश है जिसकी यूथ जनसंख्या विश्व में सबसे ज्यादा है। हालांकि अब तो ऐसा माना जा रहा है कि भारत की जनसंख्या ही विश्व की सबसे ज्यादा जनसंख्या और इस नाते भी सबसे ज्यादा युवा जनसंख्या भारत की ही है।

एक तरफ जहां पर यह आंकड़ा वरदान है वहीं पर यह अभिशाप भी है क्योंकि आज का युवा अपने भविष्य को लेकर जितना तनाव में हैं उतना शायद यह पहले कभी नहीं था। क्योंकि उसकी इच्छाएं बढ़ गई हैं। युवाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग नौकरी की तलाश में भटकता रहता है। नौकरी ना मिलने से हताश होकर आत्महत्या करता है। उल्लेखनीय यह भी है कि आंकड़े बताते हैं महिलाओं की इस उम्र में आत्महत्या करने की संख्या पुरुषों की अपेक्षा काफी कम है। जहाँ 56.51 प्रतिशत पुरुष है वहीँ 43.49 प्रतिशत महिलाएं है। जिन मुख्य कारणों से आजकल युवा आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहा है उनमें सर्वप्रथम किसी करियर एग्जाम में फेल होना है। उसके बाद अन्य श्रेणी में बीमारी और घरेलू कारण होते हैं। अगर गृह मंत्रालय की साइट एनसीआरबी की बात करें तो आंकड़े बहुत चौकाने वाले हैं। 2021 के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करने वाले कुल 10700 बच्चों में से 864 बच्चों ने भिन्न-भिन्न परीक्षाओं में फेल होने के कारण आत्महत्या की। वही एक और आकड़ा सामने आता है कि 2021 में बारहवी कक्षा के 13000 बच्चों ने आत्महत्या की है और आई आई टी के तीन बच्चें और एन आई टी के तीन बच्चों ने भी आत्महत्या की है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बहुत सी आत्महत्याएं इस प्रकार की होती हैं जिनको पुलिस एक्सीडेंट करार कर देती है। आखिर क्या वजह है और कौन दोषी है इन हत्याओं का। अगर एक सिरे से सोचा जाए तो हमारी संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक दबाव एक दूसरे को देखकर आपस में प्रतिस्पर्धा की भावना और 18 से 30 साल के बच्चों को उनसे अभिभावकों का ठीक से संवाद ना होना है।

शिक्षा का अर्थ हमें यह नहीं मानना चाहिए कि किसी व्यक्ति के पास कितनी उपाधियाँ है। शिक्षा का वास्तविक अर्थ है-समालोचनात्मक, विचार शक्ति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अर्थात कारण और परिणाम के बीच संबंध स्थापित करना और तथ्यों के आधार पर तार्किक विश्लेषण का विकास करना। यह कोई आवश्यक नहीं कि सब कुछ उपाधियों के आधार पर ही विकसित हो। एक कुशल प्रशासक बनने के लिए, राजनेता बनने के लिए, नीति निर्धारक बनने के लिए, अच्छी व्यूह रचना बनाने के लिए, अच्छा योद्धा बनने के लिए अनेक विकल्प है। परंतु हमको लगने लगा है कि यह नहीं तो कुछ नहीं।

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