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किसानों का असंतोष आंदोलन के रूप में दिख रहा सड़कों पर : वशिष्ठ गोयल

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गुड़गांव, 26 मार्च (अजय) : देश भर में किसानों का असंतोष चरम पर है। वे उत्साह में कहीं आंदोलन कर रहे हैं तो कहीं हताशा में खुदकुशी। वर्तमान सरकार के दौरान किसानों के हाल और बेहाल हुए हैं। बीते वर्ष मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन के दौरान कई किसानों की जान चली गई थी। वहीं हाल में मुंबई में हजारों किसानों का पैदल मार्च सुर्खियों में छाया रहा। मौसम आधारित जोखिम, छोटी होती जोतें, फसलों की बढ़ती लागत एवं बाजार मूल्यों में असंतुलन कृषि क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं हैं। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सेवाओं पर लगातार बढ़ता खर्च भी किसानों की परेशानी बढ़ा रहा है। इस दौर में खेती घाटे का सौदा बन गई है। जहां औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर सात प्रतिशत से अधिक है वहीं पिछले दो वषों में खेती में मूल्य आधारित वृद्धि दर दो प्रतिशत से कम रही है।

किसानों एवं खेती की इस हालत के लिए सरकारी एवं प्रशासनिक तंत्र जिम्मेदार है जो कृषि क्षेत्र की वित्तीय प्राथमिकताओं का निर्धारण इस पर जीवन निर्वाह करने वाले किसान मजदूरों, जो देश की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है, के स्थान पर जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी से निर्धारित करता है। देश के जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है तथा वर्तमान में 13 प्रतिशत के स्तर पर है। आर्थिक समीक्षा एवं अन्य सरकारी आंकड़े स्पष्ट करते है कि बंपर उत्पादन के बाद भी किसान गंभीर संकट में है, लेकिन सरकार के पास इससे निपटने की योजना नहीं है। इस वर्ष कृषि बजट की 60 प्रतिशत धनराशि कृषि ऋण के ब्याज अंतर को चुकाने एवं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रीमियम के लिए रखी गई है जिससे किसानों को कोई सीधा लाभ नहीं पहुंचता।

देश भर में किसान आंदोलनों की प्रमुख मांग संपूर्ण कर्ज माफी एवं स्वामीनथान आयोग की संस्तुतियों के आधार पर फसलों के न्यूतनम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी में 50 प्रतिशत लाभ शामिल करने की रही है। किसानों की इन दोनों मांगों का मूल आधार राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्रों एवं चुनावी सभाओं में किए गए वादे हैं। संप्रग सरकार द्वारा वर्ष 2008 में 72 हजार करोड़ रुपये की ऋण माफी से 2009 में मिली चुनावी सफलता के बाद ऋण माफी किसानों के वोट लेने के लिए राजनीतिक अस्त्र के रूप में सामने आई है। शायद ही ऐसा कोई दल हो जिसने चुनाव में ऋण माफी का वादा न किया हो। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में इसका वादा किया था। राहुल गांधी ने भी पंजाब और गुजरात में यही दांव चला। हालांकि उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में कुछ कर्ज माफी हुई भी है, लेकिन इसका फायदा भी सभी किसानों को नहीं मिला। इससे किसानों को तात्कालिक लाभ तो दिया जा सकता है, लेकिन इससे कृषि क्षेत्र में आवश्यक संरचनात्मक सुधार नहीं हो सकता। इसमें सबसे ज्यादा जरूरत कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की है। वर्ष 2004 से 2013 के बीच कृषि निवेश की दर जो 10 प्रतिशत वार्षिक थी, वह 2013-17 के बीच घटकर 2.3 प्रतिशत रह गई है।

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