[post-views]

ये मुलाकात इक बहाना है…. जानिए नीतीश की राजनीति का राज

37

PBK NEWS | नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के विदाई सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से आयोजित भोज चर्चा का विषय बना हुआ है। उस चर्चा की खास वजह है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश का मोदी के निमंत्रण पर पटना से आकर शामिल होना। अपने चार दिवसीय दिल्ली दौरे के पहले दिन नीतीश कुमार ने जहां एक तरफ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और महागठबंधन में बनी असमंजस की स्थिति पर चर्चा की तो वहीं रात में वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ भोज में शरीक होंगे।

बिहार में महागठबंधन के दो सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल और जेडीयू के बीच टकराव पैदा होने के बाद जो ख़तरा मंडरा रहा है उसके बाद नीतीश का यह दिल्ली दौरा बेहद खास माना जा रहा है। आइए आपको बताते हैं राहुल के साथ बैठक और पीएम मोदी के साथ डिनर करने की आखिरकार नीतीश की क्या है डिप्लोमेसी?

महागठबंधन पर तलवार के बीच नीतीश की राहुल-मोदी से मुलाकात

लालू यादव के रेल मंत्री रहते यूपीए सरकार के दौरान हुए रेलवे टेंडर घोटाले के सामने आने और होटल के बदले जमीन केस में सीबीआई की तरफ से बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद जहां एक तरफ तेजस्वी के ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है, वहीं दूसरी तरफ जेडीयू की तरफ से तेजस्वी को सरकार से हटाने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है।

लेकिन, तेजस्वी मामले पर जिस तरह का अड़ियल रुख लालू यादव और उनकी पार्टी ने दिखाया है, उसके बाद महागठबंधन ख़तरे में पड़ता हुआ नजर आ रहा है। उसकी वजह है नीतीश का भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख। ऐसे में पिछले दिनों ये खबर आयी थी कि सोनिया ने पूरे मामले पर दखल देकर फिलहाल स्थिति को शांत कराने की कोशिश की है। इस मायने में नीतीश का ये दिल्ली दौरा बेहद खास है।

क्या होगा नीतीश का अगला कदम

दरअसल, तेजस्वी मामले पर जिस तरह जेडीयू और राजद आर-पार की स्थिति में हैं, ऐसे में राजनीतिक जानकर इसे लालू यादव के लिए अच्छा नहीं मान रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का यह मानना है कि लालू यादव और उनके परिवार के ऊपर पहले से ही कई केस चल रहे हैं और गिरफ्तारी की गाज किसी भी वक्त गिर सकती है। ऐसे में लालू यादव के लिए सरकार से अलग होने का फैसला बेहद मुश्किल होगा। लालू यादव ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि सरकार से अलग हो जाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर लालू यादव और उनके परिवार की गिरफ्तार होती है तो वह चाहेंगे कि नीतीश कुमार उनका प्रतिनिधित्व करें।

तो क्या यह लालू के दबाव की राजनीति है

जिस तरह से तेजस्वी के मामले पर राजद अड़ी हुई है और जेडीयू को अपना संख्या बल बताने में लगी है, उससे ऐसा साफ जाहिर है कि वह बिहार में अपने सहयोगी दलों को ताकत का एहसास कराना चाहती है। लेकिन, नीतीश कुमार ने पहले ही साफ कर दिया कि राजद को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि जिस वक्त राजद विपक्ष में थी, तब उनकी क्या स्थिति थी। राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार मानते हैं कि दरअसल ये लालू की तरफ से एक दबाव की राजनीति है जो वह नीतीश पर बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन नीतीश इन बातों को बखूबी जानते हैं। यही वजह है कि तेजस्वी मामले पर नीतीश आर या पार के अपने रुख पर कायम हैं।

महागठबंधन पर कब तक बना रहेगा सस्पेंस

इस वक्त देश की राजनीति में यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर जिस महागठबंधन की राय से अलग जाकर नीतीश कुमार की तरफ से एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के नाम पर समर्थन देने का एलान किया गया और उससे जो सियासी भूचाल आया है, उसका नतीजा क्या होगा? बिहार में महागठबंधन की यह सरकार रहेगी या जाएगी?

राजनीतिक जानकारों की मानें तो तेजस्वी मामले पर राजद का झुकना तय है, क्योंकि लालू यादव अगर नहीं झुकते हैं तो नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएंगे। और ये बात लालू यादव भी बखूबी जानते हैं। ऐसे में अब तक सबसे बड़ा दिलचस्प वाकया बिहार की राजनीति में जो देखने को मिला वो है- पहले आप, पहले आप की राजनीति। नीतीश कुमार गेंद को लालू यादव के पाले में डाल रहे हैं तो लालू यादव नीतीश कुमार के पाले में। फिलहाल, तेजस्वी के मामले पर नीतीश ने लालू के पाले में गेंद डाल दी है, अब आगे का फैसला लालू को लेना है कि वो क्या चाहते हैं।

नीतीश का क्या होगा अगला कदम

नीतीश कुमार की राजनीति पर पैनी नजर बनाए रखनेवाले राजनीतिक जानकारों की मानें तो वह किसी भी फैसले को आनन-फानन में नहीं लेते हैं। फैसला लेने से पहले उसका पूरा सियासी गणित और नफा नुकसान का आकलन कर लेते हैं। इस वक्त भी कुछ ऐसा ही है, जहां नीतीश कुमार ने एक तरफ राजद को अपने रुख से अवगत करा दिया है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा की ओर से सरकार गिरने की स्थिति में मिलनेवाले समर्थन की स्थिति का आकलन कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इस महागठबंधन का जाना तो किसी भी सूरत में तय है, क्योंकि यह बेमेल गठबंधन है लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद नीतीश कुमार कुछ बड़ा फैसला ले सकते हैं।

NEWS SOURCE:- www.jagran.com

Comments are closed.