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NCR में लागू हो Environment Emergency : गोयल

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गुड़गांव (अजय) : अभी कुछ दिन हुए जब देशवासी बाढ़ और बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान की  चर्चा कर रहे थे और  अब कमोबेश पूरे देश में और अत्याधिक देश की राजधानी दिल्ली में बिगड़ते प्रदूषण पर चर्चा करने का समय आ गया।दरसल अक्तूबर, नवंबर, दिसंबर, जनवरी इन चार महीनों में ही प्रति वर्ष यह चर्चा उठने लगी है।

इसके बाद जल संकट का समय आ जाएगा और उसके बाद फिर बाढ का समय आ जाएगा ओर सरकारों को भी यह मालूम है किथोडे समय बाद इस समस्या की चर्चा से निजात मिल जाएगा, फिर दूसरे की चर्चा करेंगे। आज से 25 साल पहले जब कभी सुनते थे कि बच्चे मास्क लगा कर स्कूल जाएंगे तो बोलने वाले पर हंसी आती थी लेकिन आज स्थितिये आ गई है कि स्कूल जाना तो दूर अगर 24 घंटे मास्क नहीं लगाया जाए तो जीना दुर्लभ हो गया है। अक्सर हमारी आदत है कि किसी भी विपदा को प्रकृति से जोड कर उसे प्राकृतिक विपदा का नाम देकर अपने आपकोअसहाय सा महसूस कर लेते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि चाहे विपदा जल संकट की हो, बाढ की या प्रदूषण की इन सभी के पीछे प्रत्यक्ष रूप से इन्सान का हाथ है या कह लीजिए कि हम विकास और टेक्रोलोजी का आनंद इसकीकीमत देकर कर रहे हैं।

आज हालात ये हो गये हैं कि यदि विश्व के अत्यंत प्रदूषित शहरों की तेलना करें तो भारत सबसे ज्यादा प्रदूषित 10 देशों में 8 वें नंबर पर है। यदि हम दिल्ली शहर की बात करें जोकि सारा एनसीआर तक सीमित है, देश के 10सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में दूसरे नंबर पर है। दूनियां में 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 10 शहर भारत के ही हैं। 5 लाख लोगों की मौत समय से पहले ही हो जाती है। विज्ञान के इस युग में ih-,e 2.5 कण के शरीर मेंजाने से इंसान की आयु लगीाग 4 साल कम हो जाती है। ऐसा नहीं कि प्रदूषण की समस्या भारत की समस्या है अन्य विकसित देशों में भी प्रदूषण का काला साया फैलता जा रहा है। चीन के सबसे बड़े शहर बेंजिंग में अभी 2015में वायु प्रदूषण तीन दिन के लिए खतरनाक सीमा को पार कर गया था और उन्होंने बेंजिंग में रेड अलर्ट जारी कर दिया और तब से पंच वर्षीय योजना लागू करके वहां के वायु प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रण कर लिया गया है,लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में या तो योजना बनती नहीं, अगर बनती है तो उसका सक्रिय होना मुश्किल होता है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए न्यायालय में 15 साल पुरानी डीजल की गाडियों के चलने पर रोक लगा दीऔर सिविल कंस्ट्रकशन के सारे प्रोजेक्ट को रोक दिया गया है। इन दोनों उपायों के साथ-साथ दिल्ली एनसीआर में खुदाई के कार्यों को तुरन्त आवश्यक है वहां पर रेत के ऊपर छिडकाव का प्रावधान अति आवश्यक है।

आई.आई.टी. कानपुर द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली एन.सी.आर. की प्रदूषण व्यवस्था पर जारी की उससे यह साफ हो गया कि वातावरण में पी.एम.2.5 की मात्रा 35 प्रतिशत है। जबकि गाड़ियों से निकलने वाला प्रदूषण 25 प्रतिशत है और गाड़ियों से निकलने वाले 25 प्रतिशत में भी लगभग 40 प्रतिशत हैबी डीजल ट्रको का है। इससे बात साफ हो गयी कि पी.एम.2.5 व पी.एम.10 का 35 प्रतिशत होने का मतलब है कि दिल्ली की हवाओं को खतरनाक बनाने में जितना योगदान गाड़ियों के धुएं से है उससे अधिक योगदान धूल कणों का है। धूल कणों के प्रति सरकार बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं है। धूल कणों में लगभग 77 प्रतिशत धूल कण निर्माण स्थलों से होता है और बाकी रोड पार्टिकल का है। धूल कणों के अन्दर भी भारी कण वाले डस्ट इतने खतरनाक हैं कि वह सांस की बीमारियों, फेफड़ों व हार्ट के लिए खतरनाक हैं। सही मायनो में पूछें तो एन.सी.आर. वासियों के लिए प्रदूषण की समस्या डस्ट पार्टिकल की समस्या ही है लेकिन उपरोक्त जितने भी प्रयास माननीय अदालत व सरकार द्वारा किये जा रहे है उसमें इस समस्या के समाधान को छुआ भी नहीं है। दिल्ली में भारी मात्रा में मेट्रो कंस्ट्रक्सन, दिल्ली के आस पास के क्षेत्र खास तौर से गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद आदि की सरकारें व प्रशासन तो डस्ट के प्रति बिल्कुल संवेदनशील नहीं है। यदि हम कभी चण्डीगढ़ जाये तो हमें लगेगा कि गाड़ियों के क्षेत्र में चण्डीगढ़ भी कोई पीछे नही है लेकिन दिल्ली की तुलना में धूल प्रदूषण न के बराबर है। देहरादून में तो स्थिति और भी अच्छी है जबकि इन दोनों शहरों में डीजल, पट्रोल के वाहनों की तादात में कोई बहुत अन्तर नहीं है। मेरा सुझाव है कि यदि माननीय उच्चतम न्यायालय वाकई इस समस्या के प्रति संवेदनशील है तो सरकारों के ऊपर धूल नियंत्रित करने के लिए दबाव बनाये और सरकारों द्वारा लिए जा रहे कदम की निगरानी के लिए एक हाईपावर मोनेटरिंग कमेटी माननीय उच्चतम न्यायालय की देख रेख में बने जो सभी ऐसे स्थानों जहां से धूल कण उड़ते हैं, का नियमित दौरा करें और यदि आदेशों का पालन नहीं हो रहा है तो उस क्षेत्र के प्रशासन व अधिकारियों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करें। धूल प्रदूषण के मामले में एन.सी.आर. को जीरो टोलरेंज जोन घोषित किया जाये, जिन क्षेत्रों के कच्चे होने की वजह से वातावरण में धूल कण उड़ते हैं, सरकार उनको पक्का करने की नीति बनाये व इस कार्य को तय समय सीमा में पूरा करें, जिन नई सड़कों के निर्माण की योजनाये किन्ही भी कारणों से अधर में लटकी हैं उनके निर्माण व चौड़ीकरण का जिम्मा उच्चतम न्यायालय सीधे सीधे अपनी निगरानी में ले व समयवद्ध तरीके से पूरा करें, उदाहरणतः वसंत कुंज से एक सड़क नेलसंस मंडेला मार्ग होके सीधे गुड़गांव आयेगी जो कि 15 सालों से अटकी है, इसी प्रकार एक योजना बदरपुर से नरेला तक की एक सड़क योजना अधर में लटकी है। इसी प्रकार पूरी दिल्ली में न जाने कितनी योजनायें अटकी हुई हैं। उन सबको पूरा किया जाये,

दिल्ली में अत्यंत यातायात वाले क्षेत्रों में जल्द से जल्द समोग प्री टॉवर लगाना भी स्थायी समाधान हो सकता है। अत्यंत हानिकारक दिनों में स्कूलों की छुट्टी करके, स्कूलों की बसों का न चलना भी प्रदूषण सुधारने में सहायकसिद्ध होगाप्रदूषण नियंत्रण जांच केंद्रों पर सख्त निगरानी रखी जाए  और उच्च तकनीक वाली मशीनों द्वारा ही गाडियों के प्रदूषण की जांच हो।ऐसे क्षेत्र जहां पर नियमित रूप से धूल उडती है उनको चिन्हित करके नियमितरूप से पानी का छिडकाव  करवाया जाए।सभी विभागों के जेई, एसडीओ और एकसियन स्तर के अधिकारी नियमित रूप से अपने क्षेत्रों का  दौरा करें और धूल उडाने वाले क्षेत्रों पर पानी छिडकने का बंदोबस्त करें। ऐसे औद्योगिक क्षेत्र जो कि दिल्ली में प्रदूषण  फैलाते हैं उनको तुरन्त बंद करें।इस प्रकार अन्य कार्य जो दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के लिए फाइलों में पडे हैं  उनको पूरा करने का उच्चतम न्यायालय आदेश देगा तो ही दिल्लीप्रदूषण मुक्त हो ेपाएगा, यह कोई असंभव कार्य नहीं है।

 

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