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दुष्कर्म मामलों में प्रशासन की जवाबदेही तय करें सरकार : अशोक

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गुड़गांव 15, अगस्त (अजय) : मुजफ्फरपुर बालिका गृह में रह रही लड़कियों से दुष्कर्म का मामला कितना गंभीर है, यह इससे पता चलता है कि इस शर्मनाक कांड का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने भी ले लिया है। यह घटना सरकारी सिस्टम की विफलता का नतीजा है। ऐसी ही विफलता नब्बे के दशक में चारा घोटाला में भी सामने आई थी, लेकिन यह उल्लेखनीय है कि चारा घोटाले की सीबीआइ जांच अदालत के आदेश के कारण हुई थी और उसने जांच की निगरानी भी की थी। हालांकि बालिका गृह कांड की सीबीआइ जांच बिहार सरकार की सिफारिश पर हो रही है, लेकिन इस एजेंसी के किसी दबाव में आने या फिर अन्य किसी कारण से जांच सही तरीके से न हो पाने के खतरे से बचने के लिए जांच अदालत की निगरानी में होनी चाहिए। ध्यान रहे कि देश का ध्यान आकर्षित करने वाले मामलों में आरोपितों को सजा मिलने से ही आम लोगों का सिस्टम पर भरोसा बढ़ता है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह में घटी घटनाएं बताती हैं कि शासन तंत्र के संबंधित लोगों ने इस बालिका गृह के संचालक का उसके जघन्य कार्यों में या तो सहयोग किया या फिर इन कार्यों की जानबूझकर अनदेखी की। यहां की 44 में से 34 लड़कियों के साथ दुष्कर्म की बात सामने आई है। क्या यह संभव है कि बालिका गृह के पड़ोसी पीड़ित लड़कियों की चीख-पुकार सुन लें, लेकिन प्रशासन के कान पर जूं न रेंगे? आखिर इसे सिस्टम की विफलता नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?

इस पर हैरानी नहीं कि बिहार के लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि शर्मसार करने वाले मुजफ्फरपुर कांड की सीबीआइ जांच अदालत की निगरानी में हो। चूंकि मामला बहुत गंभीर है इसलिए बिहार सरकार ने भी यह अपेक्षा व्यक्त की है कि मामले की जांच अदालत की निगरानी में हो। बेहतर हो कि ऐसा होना सुनिश्चित हो। ऐसे होने पर ही यह उम्मीद बंधेगी कि मुजफ्फरपुर के महापापी बच नहीं पाएंगे।

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